भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध
बिहार खेतिहर मंच के बैनर तले उन्होंने किसानों के लिए काम करना शुरू किया। बिहार में शीर्ष सहकारी संगठनों में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका धर्मयुद्ध तब शुरू हुआ जब बिहार के शाहाबाद क्षेत्र के किसानों के खेत शीर्ष सहकारी संस्था बिस्कोमौन (बिहार राज्य सहकारी विपणन संघ) द्वारा दिए गए घटिया उर्वरकों के कारण नष्ट हो गए। उन्होंने घटिया उर्वरकों, घटिया बीजों और नकली कीटनाशकों की आपूर्ति के साथ-साथ बिहार राज्य सहकारी बैंक और बिहार राज्य भूमि विकास बैंक के माध्यम से किसानों को ऋण और सब्सिडी प्रदान करने में की गई धोखाधड़ी का मुद्दा भी उठाया। उनके अथक प्रयासों के कारण बिस्कोमौन को बिहार के शाहाबाद क्षेत्र के उन किसानों को मुआवजा देने के लिए बाध्य किया गया, जिनकी फसलें उसके घटिया उर्वरकों के कारण नष्ट हो गई थीं। बाद में, बिहार के सहकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद और कुप्रबंधन के खिलाफ उनके आंदोलन के कारण 1987 में श्री भागवत झा आजाद की सरकार द्वारा बिस्कोमौन, राज्य सहकारी बैंक और राज्य भूमि विकास बैंक जैसे शीर्ष सहकारी संस्थानों का अधिग्रहण कर लिया गया।
उन्होंने 1994 में बिहार में लालू प्रसाद सरकार में हुए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया और 11 अक्टूबर 1994 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर राज्य भाजपा की ओर से एक आरोपपत्र सौंपा। दिसंबर 1995 में बिहार विधानसभा में एक साथ रखी गई तीन वर्षों (1991-1992, 1992-1993, 1993-1994) की कैग रिपोर्टों के विश्लेषण के आधार पर उन्होंने 6 जनवरी 1996 को तत्कालीन वित्त आयुक्त को एक पत्र लिखा था, जिसमें पशुपालन विभाग के अधिकारियों द्वारा जाली बिलों और बढ़े हुए बजट प्रावधानों के माध्यम से विभिन्न जिलों में राज्य के खजाने से फर्जी और अतिरिक्त निकासी का आरोप लगाया गया था। कैग रिपोर्टों में अनियमितताओं को सबसे पहले उन्हें नवभारत टाइम्स, पटना संस्करण के एक वरिष्ठ रिपोर्टर श्री सुकांत ने बताया था।
अक्टूबर 1994 और जनवरी 1996 में उनके द्वारा लगाए गए आरोप तब सच साबित हुए जब बिहार के तत्कालीन वित्त आयुक्त के आदेश से 25 जनवरी 1996 को पश्चिम सिंहभूम जिले के उपायुक्त द्वारा चाईबासा कोषागार पर छापा मारा गया और घोटाले का आधिकारिक रूप से पर्दाफाश हुआ। उन्होंने सुशील कुमार मोदी और शिवानंद तिवारी के साथ मिलकर पटना उच्च न्यायालय में बिहार के चारा घोटाले की सीबीआई जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की, जिसे पटना उच्च न्यायालय द्वारा मंजूर कर लिया गया और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर अपनी स्वीकृति दे दी और सीबीआई को पटना उच्च न्यायालय की निगरानी में घोटाले की जांच करने का निर्देश दिया।
उन्होंने झारखंड के मधु कोड़ा सरकार के मंत्रियों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने झारखंड विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह चर्चित झारखंड लौह अयस्क घोटाले और जनहित के अन्य मामलों को उजागर किया। उन्होंने झारखंड में लौह अयस्क खदानों के आवंटन में अनियमितताओं का पर्दाफाश किया और उसमें हुए भ्रष्टाचार के सबूत सार्वजनिक किए।
उन्होंने घोटालेबाजों द्वारा झारखंड के मंत्रियों के साथ मिलीभगत कर अवैध रूप से अर्जित किए गए धन को हवाला के जरिये विदेशों में संपत्तियां खरीदने और विदेशी कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल करने में खपाने का मुद्दा भी उठाया। सरयू राय द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों के आधार पर आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने घोटाले की जांच शुरू की और आरोपियों के ठिकानों पर छापेमारी कर संवेदनशील कागजात बरामद किए।
झारखंड हाई कोर्ट में इस संबंध में जो जनहित याचिका दायर की गई उसमें उन दस्तावेजों को एनेक्सचर के रूप में संलग्न किया गया जो सरयू राय ने 7 अप्रैल, 2008 से 13 नवंबर, 2008 तक प्रेस वार्ता के दौरान मीडिया में जारी किए थे। लौह अयस्क घोटाले की जांच अब रांची हाईकोर्ट के आदेश से सीबीआई कर रही है। उन्होंने सरकार में विभिन्न अनियमितताओं और झारखंड के विकास में बाधक बन रहे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाया। उन्होंने झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित बड़ा जामदा, गुआ और नोआमुंडी ब्लॉक में लौह अयस्क का अवैध खनन और प्रॉक्सी खनन का मुद्दा भी उठाया। इसकी जांच भी सीबीआई कर रही है।
वह भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन कमेटी (एसीएसीआई) में सदस्य के रूप में जुड़े। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की अध्यक्षता वाली एक्शन कमेटी में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल, श्री एस. गुरुमूर्ति, श्री के.एन गोविंदाचार्य, श्री आर वैद्यनाथन, श्री अभिषेक जोशी सहित कई दिग्गज हस्तियां शामिल थीं।
समिति दिल्ली में स्वामी विवेकानन्द में अपनी नियमित बैठक आयोजित करती थी। उन्होंने इस मंच के तहत झारखंड में विभिन्न स्थानों पर आयोजित कई सार्वजनिक बैठकों को संबोधित किया। एक विशाल बैठक 18 मार्च 2012 को रांची में हुई जिसे डॉ. सुब्रमण्यन स्वामी ने संबोधित किया। उन्होंने कुछ अन्य सार्वजनिक बैठकों को भी संबोधित किया जिनका आयोजन धनबाद, बोकारो, जमशेदपुर तथा कुछ अन्य स्थानों पर किया गया। उन्होंने झारखंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ कई अभियानों का नेतृत्व किया। विडंबना यह थी कि कुछ अभियानों को छोड़कर न तो सरकार ने उनका साथ दिया और न ही भाजपा संगठन के नेताओं ने। कुछ नेताओं ने उनके रास्ते में काफी रुकावटें भी डालीं। यहां तक कि वहां के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने से मना करने के लिए भी कहा गया।
हालांकि संबंधित स्थानों पर बड़ी संख्या में भाजपा नेता और कार्यकर्ता उनके भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रमों में शामिल भी हुए और इसे व्यवस्थित करने में सहायता भी की।
2015 से 2019 तक झारखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर उन्होंने कैबिनेट की बैठकों में भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले फैसलों का विरोध किया।
वह सीएम और विभागीय सचिव को इस संबंध में पत्र लिखकर अपने विचार व्यक्त करते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिला और 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने मौजूदा मुख्यमंत्री रघुबर दास को हराकर प्रभावशाली अंतर से चुनाव जीता।