किसानों के लिए संघर्ष
प्रेस विज्ञप्ति
पूर्व विधायक एवं सोन अंचल किसान संघर्ष समिति के संयोजक सरयू राय का प्रेस वक्तव्य
सरयू राय का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी मैट्रिक तक की प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव में ही ग्रहण की थी। इसलिए वह कृषि कार्यों से जुड़ी समस्याओं और किसानों के सुख-दुख से भली-भांति परिचित हैं। वह खेती के कामों में, विशेष रूप से बुवाई और कटाई के मौसम में अपने माता-पिता की मदद करते थे। इस दौरान उन्होंने स्वाभाविक रूप से किसानों, खेत मजदूरों और ग्रामीण समुदाय की व्यावहारिक समस्याओं और उनके निदान के बारे जाना। बिहार में जनता पार्टी के पूर्व महासचिव के रूप में उन्होंने किसानों से जुड़े मुद्दों और प्रचलित कृषि पद्धतियों को प्राथमिकता के आधार पर उठाया। उन्होंने अपने प्रयासों को गति देने के लिए एक किसान संगठन भी बनाया।
सोन नदी एक अंतरराज्यीय नदी है और पुल्लिंग नदी भी मानी जाती है। भारत में आमतौर पर नदियां स्त्रीलिंग हैं, सिवाय सोन, दामोदर और ब्रह्मपुत्र के। सोन नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक पठार से निकलती है और मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में 510 किमी, उत्तर प्रदेश में 82 किमी और बिहार एवं झारखंड में 233 किमी का सफर तय करने के बाद पटना से लगभग 35 किमी दक्षिण में मानेर के पास पवित्र गंगा में मिल जाती है। ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार में देश की सबसे पुरानी नहर प्रणाली निचली सोन नदी के पास विकसित की गई थी। अब यह लगभग 22.50 एकड़ के सकल क्षेत्र की सिंचाई करती है। नहर प्रणाली की परिकल्पना 1853 में ब्रिटिश सेना के एक जूनियर इंजीनियर, श्री डिकेंस ने की थी। काम 1967 में शुरू हुआ था और सिंचाई एवं नौकायन के लिए नहरों को 1874 में चालू किया गया था। 1892 में हर्बर्ट एम विल्सन के नेतृत्व में अमेरिकी विशेषज्ञों की एक टीम नहर प्रणाली का अध्ययन करने आई थी। उन्होंने स्टीमर से नहरों में घूमकर एक रिपोर्ट तैयार की, इसे संयुक्त राज्य सरकार को सौंपा और इसके बाद अमेरिका में सतही सिंचाई की शुरूआत हुई।
16 सितंबर, 1973 को मुख्य रूप से कृषि उद्देश्यों के लिए मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार सरकारों के बीच सोन नदी के पानी के बंटवारे पर एक अंतरराज्यीय समझौता हुआ था लेकिन अब सोन नदी के पानी को अवैध रूप से मुख्यतः बिहार सरकार को सूचित किए बिना भी विद्युत संयंत्रों को औद्योगिक उद्देश्य से मोड़ दिया गया है। श्री सरयू राय ने वर्ष 1982 में इस मामले को उठाया और सौ साल पुरानी सोन नहर प्रणाली पर इसके विपरीत प्रभाव की चेतावनी दी। उन्होंने "सोन अंचल किसान संघर्ष समिति" के बैनर तले किसान आंदोलन भी शुरू किया। वर्ष 1993 में उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसे 2010 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इस मामले में अंतिम फैसला 21 सितंबर, 2011 को पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा माननीय न्यायाधीश श्री सुधीर कुमार कटारिया और श्री अहसानुद्दीन अमानुल्लाह द्वारा सुनाया गया था।
सिविल रिट क्षेत्राधिकार वाद संख्या 3521,1993 का निर्णय दिनांक 21 सितंबर, 2011 को दिया गया। परिणामस्वरूप, इस रिट याचिका का निपटारा केंद्र सरकार को अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के प्रावधानों के तहत एक ट्रिब्यूनल गठित करने के निर्देश के साथ किया गया। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार को नदी बोर्ड अधिनियम के साथ-साथ बिहार पुनर्गठन अधिनियम की धारा 79 और मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की धारा 76(1) के प्रावधानों को भी ध्यान में रखना होगा।
फैसले में न्यायाधीशों ने कहा कि अंतिम निर्णय देने से पूर्व, हमें यह रेखांकित करना होगा कि किस प्रकार श्री सरयू राय, याचिकाकर्ता संख्या 1 ने हमारे समक्ष कार्यवाही का संचालन किया, जिस सक्षमता के साथ उन्होंने हमारी सहायता की और इस मामले को अदालत में दायर करने के बाद से अब तक उन्होंने धैर्य बनाए रखा है, उसकी हम गहरी सराहना करते हैं।
हस्ताक्षरित (एस.के. कटारिया, जज)
हस्ताक्षरित (अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, जज)
पटना उच्च न्यायालय, पटना
(21 सितम्बर, 2011)
उत्तर प्रदेश में रिहन्द बांध के आसपास स्थापित तापीय विद्युत संयंत्रों को सिंचाई के लिए निर्धारित पानी को अवैध रूप से मोड़ने का दुष्प्रभाव अब बिहार में सोन नहर प्रणाली पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, जिससे बिहार के 6 जिलों में सूखा पड़ रहा है। इसके अलावा सुपर थर्मल पावर प्लांट कॉम्प्लेक्स इस क्षेत्र में तीव्र प्रदूषण और पर्यावरणीय गिरावट का कारण बन रहा है। सरयू राय ने अगस्त 2010 में अमरकंटक स्थित सोन नदी के उद्गम स्थल से लेकर पटना के पास गंगा नदी के संगम स्थल तक एक अध्ययन सह जागरूकता यात्रा शुरू की। उन्होंने पहल की है और झारखंड के गढ़वा जिले के नगर उटारी गांव के एक जागरूक किसान श्री शारदा महेश प्रताप देव को इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करते हुए "सोन आंचल किसान विकास समिति" के बैनर तले पूरे सोन नदी बेसिन के किसानों के एक संगठन का गठन किया है।
सोन नदी के पानी पर बाणसागर समझौता पूर्ववर्ती सह-धार वाले राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच 16 सितंबर, 1974 को हुआ था। इस समझौते में सदियों पुराने सोन कमांड क्षेत्र के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया था। लेकिन, समय के साथ समझौते का उल्लंघन शुरू हो गया और बिहार के हिस्से के पानी को अवैध रूप से तापीय विद्युत संयंत्रों में उपयोग के लिए मोड़ दिया जाने लगा। सरयू राय ने वर्ष 1982 की शुरुआत में ही सोन कमांड क्षेत्र के किसानों की आजीविका पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बिहार सरकार को चेतावनी दी थी। उन्होंने किसान आंदोलन चलाया और 1973 में एक जनहित याचिका भी दायर की थी, जिसे 2010 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। अगर सरकार ने उनकी चेतावनी पर ध्यान दिया होता, तो सोन कमांड क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के अभाव में होने वाले फसलों के नुकसान से बचाया जा सकता था और बिहार को सोन नदी के जल का उसका निर्धारित हिस्सा वापस मिल जाता।
Sone River Water Dispute
Memorandum submitted to the Prime Minister of India by Mr. Saryu Roy, General Secretary of Bihar State Janata Party
Memorandum to Irrigation Minister, Govt. of India
Memorandum to Water Resources Minister, Govt. of Bihar
Memorandum to Chief Minster, Govt. of Uttar Pradesh
Memorandum to Energy Minster, Govt. of India
सरयू राय ने बिहार राज्य द्वितीय सिंचाई आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया और इसकी उपसमिति की अध्यक्षता की, जिसे तत्कालीन बिहार राज्य के लिए जल नीति तैयार करने और बिहार से बहने वाली नदियों पर अंतरराज्यीय/अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का विश्लेषण करने का कार्य सौंपा गया था। श्री जगदानंद सिंह तत्कालीन जल संसाधन विकास मंत्री थे। उनकी पहल पर आयोग का गठन किया गया था और सरयू राय इसके अध्यक्ष थे। उनकी अध्यक्षता वाली उपसमिति ने निर्धारित समय से डेढ़ साल पहले ही कार्य पूरा कर लिया।
उन्होंने दिवंगत बसावन सिन्हा द्वारा स्थापित मेटाप्लानर्स एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स के साथ भी काम किया, जो ईमानदार, बुद्धिमान और जमीनी स्तर पर मेहनती इंजीनियरों की एक संस्था थी, जो जन-समर्थक थे और पूरी दुनिया में इसके लिए जाने जाते थे। उन्होंने सिंचाई में जल के सम्मिलित उपयोग, जल संसाधन योजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव, विभिन्न जल उपयोगों में प्राथमिकता और सहभागी सिंचाई प्रणाली पर काम किया।
सरयू राय ने विभिन्न कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण की शोषक प्रणाली के खिलाफ आवाज उठाई और समर्थन मूल्य निर्धारित करते समय इसके साथ-साथ घरेलू श्रमिकों की लागत और प्रबंधकीय प्रयासों को भी शामिल करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने फसल बीमा योजना को भौगोलिक क्षेत्र आधारित बनाने के बजाए किसान इकाई आधारित बनाने की मांग की।
बिहार के किसानों को बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसी घटिया कृषि सामग्री की आपूर्ति के कारण बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इसने कृषि विकास को बाधित किया और कृषक समुदाय को भारी वित्तीय हानि पहुंचाई। उन्होंने इसके पीछे के भ्रष्ट सिस्टम का पर्दाफाश किया और ऐसी जनविरोधी प्रथाओं को सफलतापूर्वक विफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।