पत्रकारिता का सफर

सरयू राय को पत्रकारिता के क्षेत्र में लाने का श्रेय वरिष्ठ पत्रकार दीनानाथ मिश्र को जाता है। दीनानाथ मिश्र उन दिनों प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र 'नवभारत टाइम्स' के पटना संस्करण के संपादक हुआ करते थे।

उन्होंने सरयू राय को बतौर उप संपादक सह संवाददाता के पद पर नवभारत टाइम्स में काम करने का प्रस्ताव दिया लेकिन सरयू राय एक कर्मचारी के तौर पर काम नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दीनानाथ मिश्र के इस प्रस्ताव को एक संशोधन के साथ स्वीकार कर लिया कि नवभारत टाइम्स में एक कर्मचारी के तौर पर शामिल होने के बजाय वह एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में योगदान देंगे। श्री मिश्र ने सहर्ष उनके सुझावों को स्वीकार कर लिया और उन्हें एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करने का अवसर प्रदान किया।

उन्होंने बिहार में किसानों और कृषि क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करने के लिए "कृषि बिहार" नामक एक मासिक पत्रिका भी शुरू की, विशेष रूप से "सोनांचल किसान संघर्ष समिति" के आंदोलन को, जो सोन नदी के पानी पर अपने उचित हिस्से के लिए सोन कमांड क्षेत्र के किसानों के अधिकार के लिए लड़ने वाला एक संगठन था और बाणसागर समझौते में उनके साथ किए गए अन्याय के साथ-साथ बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकारों के बीच सोन नदी के पानी पर इसके कार्यान्वयन को भी उजागर किया।

उन्होंने 1982 में जनता पार्टी की बिहार इकाई के तत्कालीन महासचिव के रूप में उपयुक्त मंचों पर इस समस्या को उठाया और एक लंबे संघर्ष के बाद मई 1993 में पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसे स्वीकार कर लिया गया और 17 वर्षों के बाद उसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया। उन्होंने स्वयं याचिकाकर्ता के रूप में पटना उच्च न्यायालय की माननीय पीठ के समक्ष मामले की पैरवी की। माननीय न्यायपीठ में न्यायमूर्ति सुधीर कटियार और न्यायमूर्ति असदुद्दीन अमान हुल्ला शामिल थे। पीठ ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। निर्णय के अंत में माननीय पीठ ने मामले में उनके योगदान की सराहना की।

'नव भारत टाइम्स' ने उन्हें एक रिपोर्टर, उप-संपादक, स्तंभकार आदि के रूप में पर्याप्त अवसर प्रदान किया। वह हर शुक्रवार और बुधवार को कृषि और विकास पर 'शुक्रवार्ता' एवं 'बुधवार्ता' शीर्षक से एक स्थायी कॉलम लिखते थे।

उन्हें प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे पाठकों के लिए एक पूरे पेज का कंटेंट तैयार करने और बनाने का कार्य भी दिया गया था।

श्री दीनानाथ मिश्र का कार्यकाल समाप्त होने के बाद श्री अरुण रंजन नवभारत टाइम्स के नए संपादक बनाए गए। श्री अरुण रंजन ने उनसे संपर्क किया और पहले की तरह ही नवभारत टाइम्स के लिए सक्रिय रूप से काम करने का आग्रह किया।

श्री रंजन ने उन्हें समाचार रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन के लिए पर्याप्त जगह दी।

एक अलिखित सांकेतिक सहमति थी कि उनके द्वारा दी गई रिपोर्ट को फ्रंट पेज पर प्रमुख खबर के रूप में रखा जाएगा और राज्य के वित्त पर उनके द्वारा लिखा गया साप्ताहिक कॉलम संपादकीय पृष्ठ पर जगह पाएगा। उन्होंने 1991 और 1992 के बीच लगातार एक वर्ष से अधिक समय तक साप्ताहिक कॉलम लिखे।

इन लेखों का संग्रह अब "समय का लेखा" नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका है, जिसे दिल्ली के एक प्रसिद्ध प्रकाशक "प्रभात प्रकाशन" द्वारा प्रकाशित किया गया है।

1993 तक एक लंबी अवधि तक उन्होंने नवभारत टाइम्स के साथ एक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम किया और साथ ही अन्य समाचार पत्रों में भी योगदान दिया।