सिंचाई आयोग सदस्य
सरयू राय एक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने के अलावा, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में लगे एक विशेषज्ञ समूह से भी जुड़े थे। यह समूह प्रसिद्ध योजनाकार और इंजीनियर श्री बसावन सिन्हा के मार्गदर्शन में कार्यरत था जिन्होंने "मेटा प्लानर्स एंड मैनेजमेंट कंसलटेंट" नामक संगठन की स्थापना की थी। इस समूह के साथ उन्होंने एक विद्यार्थी के तौर पर काफी कुछ सीखा जिनमें "अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रायोजित सदियों पुरानी सोन नहर प्रणाली" का अध्ययन शामिल है। उन्होंने विश्व बैंक समर्थित स्वर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के अध्ययन के साथ अपने जुड़ाव से भी बहुत अनुभव प्राप्त किया। उन्होंने 'जल संसाधन परियोजनाओं का पर्यावरणीय प्रभाव' शीर्षक से एक शोधपत्र भी साझा किया।
उन्हें 1991 में बिहार सरकार द्वारा गठित द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। उन्हें आयोग की उप-समिति संख्या-1 के संयोजक की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसने बिहार राज्य के लिए जल नीति तैयार करने का कार्य पूरा किया और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-राज्यीय जल-विभाजन समझौतों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया, जो पूर्ववर्ती बिहार राज्य से होकर बहने वाली नदियों पर आधारित थे। उन्होंने निर्धारित अवधि से काफी पहले ही कार्य पूरा कर लिया।
वर्ष 2002 में उन्हें भारत सरकार के खान मंत्रालय द्वारा गठित दो महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। एक समिति का गठन पर्यावरण पर खनन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया गया था और दूसरी समिति का गठन खनन और खनिजों की आय में प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को उचित हिस्से का सुझाव देने के लिए किया गया था। ये दोनों समितियां अपनी अंतिम रिपोर्ट और सिफारिशें प्रस्तुत नहीं कर सकीं क्योंकि मंत्रालय बदलने के कारण विभाग द्वारा इसे भंग कर दिया गया था। फिर भी समिति ने अपनी संक्षिप्त सिफारिशें कैबिनेट मंत्री श्री करिया मुंडा को भेज दीं।