जीवनी

बिहार और झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में सरयू राय का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सही मायनों में उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1974 के उस प्रसिद्ध छात्र आंदोलन से हुई थी जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने किया था। सरयू राय इस आंदोलन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हुए थे।

वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी रहे। उन्होंने संगठन के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दीं और बिहार एवं झारखंड विधानमंडल के सदस्य भी रहे। वह जुलाई 1998 से जुलाई 2004 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य और फरवरी 2005 से अक्टूबर 2009 झारखंड विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कुछ समय के लिए झारखंड राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में वह लगभग 3000 वोटों के मामूली अंतर से अपनी सीट हार गए लेकिन दिसंबर 2014 में वह एक बार फिर 49, जमशेदपुर-पश्चिम विधानसभा सीट से झारखंड विधानसभा पहुंचे। उस चुनाव में सरयू राय ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को 10,000 से भी अधिक वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी।

इसके बाद फरवरी 2015 में उन्हें झारखंड सरकार में संसदीय कार्य, खाद्य सार्वजनिक वितरण विभाग और उपभोक्ता मामलों का मंत्री (कैबिनेट) बनाया गया। बाद में कुछ अपरिहार्य कारणों के चलते उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री का पद छोड़ दिया।

वर्ष 2019 में उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन इस बार वह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और लगभग 16000 वोटों के बड़े अंतर से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को पराजित कर इतिहास रच दिया। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी मौजूदा मुख्यमंत्री को उन्हीं के मंत्रिमंडल के पूर्व सदस्य ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर इतने बड़े अंतर से शिकस्त दी।

सरयू राय पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका अदा कर चुके हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित दैनिक 'द नवभारत टाइम्स' के पटना संस्करण में एक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार के रूप में भी काम किया। इसके साथ ही उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों और क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं के लिए समाचार, कॉलम और लेख भी लिखे। उन्होंने बिहार के सोन नदी क्षेत्र के किसानों के आंदोलन का समर्थन और प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से 'कृषि बिहार' नामक पत्रिका का संपादन भी किया।

वह एक सक्रिय और सफल पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी चिंता, झारखंड में

प्रदूषण नियंत्रण, जल निकायों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से जुड़ी है। इन समस्याओं को उन्होंने अच्छी तरह समझा और उनके निवारण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उन्होंने दामोदर, स्वर्णरेखा और सोन जैसी नदियों को औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए सराहनीय कार्य किया। उन्होंने इन नदियों का लंबाई और चौड़ाई के आधार पर आकलन किया और इनके पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार के लिए कई अहम सुझाव भी दिए। वह भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति और स्वच्छ प्रशासन के समर्थक हैं।

उन्हें राजनीति और प्रशासन से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों को उठाने और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने कई भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी चलाए और भ्रष्ट राजनेताओं एवं अधिकारियों को सजा भी दिलवाई। भ्रष्टाचार और प्रदूषण के खिलाफ उनके संघर्ष को समाज के हर कोने से, हर वर्ग से दिन-ब-दिन गति और समर्थन मिल रहा है। हालांकि, सत्ता का करीबी एक वर्ग उनका विरोधी भी है।