पूर्व राजनीतिक कैरियर
सरयू राय जब आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो उसी वक्त (1962 में) भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया था। राष्ट्रीयता के इस दौर में वह अपने सहपाठी और घनिष्ठ मित्र राम सिहासन यादव उर्फ भोला शंकर बंधु के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। यादव वर्तमान में एक विद्यालय में शिक्षक हैं। वह बिहार में आरएसएस के एक समर्पित पदाधिकारी के तौर पर भी जाने जाते हैं। संघ के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से प्रभावित होकर वह आरएसएस में शामिल हो गये और 1962 से 1966 तक (जब तक वह उच्च शिक्षा के लिए पटना नहीं गए थे) अपने गांव 'शाखा' में 'मुख्य शिक्षक' के रूप में संघ के लिए सेवा कार्य करते रहे।
पटना जाने के बाद कुछ वर्षों के लिए उनका आरएसएस से संपर्क टूट गया। कुछ साल गोविंदाचार्य जी भागलपुर के आरएसएस प्रचारक के तौर पर बिहार आए तो सरयू राय के पुराने मित्र भोला शंकर बंधु ने गोविंदाचार्य जी को सरयू राय के बारे में बताया। इसके बाद सरयू राय एक बार फिर संघ से जुड़ गए। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ काम करना शुरू किया। उन्हें एबीवीपी की विज्ञान महाविद्यालय इकाई का प्रभारी मनोनीत किया गया। वर्ष 1969 में एबीवीपी की ओर से शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन चलाया गया जिसमें सरयू राय भी शामिल हुए। आंदोलन के इचिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी छात्र संगठन द्वारा विधानसभा का घेराव किया गया। इस आंदोलन में सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद, विक्रम कुंवर सहित कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। गिरफ्तार किए गए नेताओं में सरयू राय भी शामिल थे। उन्हें लगभग एक सप्ताह तक जेल में ही रहना पड़ा था। बाद में उन्होंने एबीवीपी में विभिन्न पदों के दायित्व का निर्वहन किया।
इसके बाद वह 1974 के प्रसिद्ध बिहार छात्र आंदोलन में शामिल हो गए और एबीवीपी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। उन्हें बिहार क्षेत्र के छपरा, सीवान और गोपालगंज के एबीवीपी संगठन प्रभारी के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था। 18 मार्च 1974 को जब बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते भ्रष्टाचार और शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की मांग को लेकर छात्रों का हुजूम बिहार विधानसभा का घेराव करने के लिए आगे बढ़ रहा था तो पुलिस ने आंदोलनकारी छात्रों पर लाठियां बरसाईं और गोलियां भी चला दीं। इस पुलिसिया कार्रवाई में घायल हुए छात्रों को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया था। सरयू राय करीब एक सप्ताह तक भर्ती छात्रों की देखभाल के लिए अस्पताल में ही रहे। वह घायल छात्रों के इलाज से लेकर भोजन तक का पूरा ख्याल रखते थे।
9 अप्रैल, 1974 को एबीवीपी के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री राम बहादुर राय की गिरफ्तारी के बाद सरयू राय को जेपी आंदोलन में एबीवीपी छात्र कार्रवाई समिति की राज्य संचालन समिति के नामित सदस्य के रूप में जोड़ा गया। इस दौरान उन्हें स्वर्गीय लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गज नेताओं के साथ काम करने का मौका मिला।
इस बीच उन्होंने सिंदरी और हजारीबाग में आरएसएस के संघ शिक्षा वर्ग (ओटीसी) का प्रथम एवं द्वितीय वर्ष पूरा किया। ओटीसी के द्वितीय वर्ष के दौरान प्रो. राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया ने उनसे आरएसएस के लिए कम से कम दो साल का समय देने को कहा। इस पर वह सहमत हो गए और उन्हें बिहार के छपरा (सारण) जिले के जिला प्रचारक का दायित्व सौंपा गया।
आपातकाल के दौरान की गतिविधियां
बात उन दिनों की है जब सरयू राय संघ शिक्षा वर्ग (ओटीसी) पूरा कर चुके थे। इसके कुछ ही दिनों बाद 25 जून 1975 की रात पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। सारे लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए, सेंसरशिप लगा दी गई, अखबारों पर ताला लगा दिया गया और जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चन्द्रशेखर जैसे नेताओं को जेल में डाल दिया गया। 28 जून 1975 को आरएसएस पर भी रोक लगा दी गई। इस दौरान सरयू राय को आपातकाल के खिलाफ भूमिगत आंदोलन के लिए काम करने को कहा गया एवं भूमिगत आंदोलन से जुड़े प्रकाशन एवं जनसंपर्क अभियान के देखरेख की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। उन्हें पुस्तिकाओं का हिन्दी अनुवाद करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया।
देश-विदेश की जेलों तथा अन्य स्थानों से अंग्रेजी में पर्चे भेजे गए। बाद में उन्हें 'द लोकवाणी' नामक एक भूमिगत पत्रिका का संपादन सौंपा गया। उनकी जिम्मेदारी पत्रिका के लिए सामग्री की व्यवस्था करने, उसे संपादित करने और प्रसारित करने की थी जबकि अशोक कुमार सिंह और अन्य को पत्रिका के मुद्रण (प्रिंटिंग) और प्रबंधकीय पहलुओं की देखभाल करने का काम सौंपा गया था।
बैंगलोर जेल में श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लिखा गया लेख जिसका शीर्षक था 'एक समय आता है जब कानून का उल्लंघन कर्तव्य बन जाता है' (A Time comes when disobedience to law becomes duty) और डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के संसद से आश्चर्यजनक तरीके से भागने का समाचार वो यादगार सामग्री है जिसे सरयू राय द्वारा अनुवादित कर प्रकाशित किया गया था।
अगस्त 1975 में अचानक से सरयू राय को लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (पी एंड टी) की ओर से ऑडिटर पद के लिए इंटरव्यू का बुलावा आया। उन्हें इस पद के लिए चुना गया था लेकिन आपातकाल के खिलाफ चल रहे आरएसएस के जेल भरो सत्याग्रह में शामिल होने के कारण उन्होंने इस इंटरव्यू को 26 जनवरी, 1976 तक स्थगित करने सा आग्रह किया जिस दिन सत्याग्रह समाप्त होना था।
सत्याग्रह समाप्त होने के बाद उन्होंने नौकरी ज्वाइन कर ली। कार्यालय में आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन के लिए काफी सकारात्मक माहौल था और कुछ दिनों के अंतराल के बाद "लोकवाणी" के संपादन, अनुवाद एवं आपातकाल विरोधी भूमिगत गतिविधियों के संचालन के लिए कार्यालय सबसे उपयुक्त स्थान बन गया।
बाद में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। चूंकि बिहार में तत्कालीन जनसंघ के लगभग सभी वरिष्ठ नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए थे या फिर आपातकाल में भूमिगत हो गए थे। ऐसे में सरयू राय को जेपी आंदोलन समर्थक अन्य राजनीतिक दलों के राज्य के नेताओं और ट्रेड यूनियनों के साथ समन्वय बनाने और चर्चा कर उनके विचारों को एक नई पार्टी का मसौदा तैयार करने के लिए एकत्र करने का काम सौंपा गया। जन संघ, कांग्रेस (ओ), लोकदल और अन्य सोशलिस्ट पार्टियों को मिलाकर एक नए राजनीतिक दल के गठन के लिए ट्रेड यूनियन के प्रख्यात नेता श्री दत्तो पंत बी ठेंगड़ी के मार्गदर्शन में वरिष्ठ नेताओं के एक समूह द्वारा एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया गया था। आपातकाल के दौरान यह सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यों में से एक था।
वर्ष 1977 के लोकसभा के आम चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी के तानाशाही शासन की हार के बाद सरयू राय को पटना में आरएसएस के बौद्धिक प्रमुख (प्रभारी बौद्धिक शाखा) के रूप में काम करने के लिए कहा गया था।
कुछ महीनों बाद उन्हें जनता युवा मोर्चा (जनता पार्टी की युवा शाखा जो पूर्ववर्ती जनसंघ गुट के प्रति निष्ठा रखती थी) का संगठन सचिव नामित किया गया। सरयू राय ने वर्ष 1979 तक इस पद पर काम किया। 1980 की शुरुआत में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार में वरिष्ठ नेताओं के साथ मतभेद के कारण उन्हें बिहार जनता युवा मोर्चा के राज्य संगठन सचिव का पद छोड़ने के लिए कहा गया और 'अफगानिस्तान पर रूसी आक्रमण के विरुद्ध समिति' के लिए काम करने की जिम्मेदारी दी गई। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी इसके राष्ट्रीय संयोजक थे। सरयू राय को इसकी बिहार राज्य कमेटी का संयोजक मनोनीत किया गया। समिति में रूस समर्थक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) को छोड़कर सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को शामिल किया गया था।