सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन न करना दुर्भाग्यपूर्णः सरयू राय

19 September 2025 | Jamshedpur
सारंडा प्रकरण पर सरयू राय
- सरकार सतह के नीचे स्थित लौह-अयस्क का खनन करने को प्राथमिकता देना चाह रही है
- मैं खुद सबूत के साथ तथ्य रख रहा हूं
- अवैध खनन की जांच के लिए जस्टिस एम बी शाह आयोग ने सरकार को ठोस सुझाव दिया था
- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चाहिए कि वह 8 अक्टूबर के पहले सारंडा को सैंक्चुअरी घोषित करें
जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक और सारंडा संरक्षण अभियान के संयोजक सरयू राय ने गत 24 जून को वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र पर स्वीकृति देने के बावजूद झारखंड सरकार द्वारा 858.18 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले सारंडा सघन वन के 575.19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य और 136.03 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कंजर्वेशन रिज़र्व घोषित करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को क्रियान्वित नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण माना है।
यहां जारी एक वक्तव्य में उन्होंने कहा कि सारंडा के सतह पर स्थित प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवों एवं जैव विविधता का संरक्षण करने को प्राथमिकता देने के बदले झारखण्ड सरकार सतह के नीचे स्थित लौह-अयस्क का खनन करने को प्राथमिकता देना चाह रही है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और खनन, उद्योग आदि योजनाओं के बीच हितों का टकराव होने की स्थिति में पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता मिलेगी।
श्री राय ने आश्चर्य जताया कि सरकार को विधि-परामर्श देनेवालों तथा खान, उद्योग और वन एवं पर्यावरण विभाग के सक्षम अधिकारी इस बारे में सरकार को सही सलाह क्यों नही दे रहे हैं।
सरयू राय ने कहा कि वर्ष 2003-04 से उन जैसा व्यक्ति सारंडा क्षेत्र में खान एवं वन विभाग के अधिकारियों द्वारा अविवेकपूर्ण खनन को बढ़ावा देने के प्रति सरकार को प्रमाण सहित सचेत कर रहा है। लौह-अयस्क के अवैध खनन की जांच के लिए 2010 में गठित जस्टिस एम बी शाह आयोग ने इस बारे में सरकार को ठोस सुझाव दिया है।
सरयू राय ने कहा कि झारखंड सरकार द्वारा 2011 में गठित समन्वित वन्यजीव प्रबंधन योजना समिति ने भी अपने प्रतिवेदन में सरकार को अविवेकपूर्ण खनन के प्रति सचेत किया है। इसके बाद भारत सरकार द्वारा 2014 में गठित कैरिंग कैपेसिटी ऑफ सारंडा अध्ययन समिति ने सारंडा सघन वन क्षेत्र के संरक्षण का महत्वपूर्ण सुझाव दिया है। इसके साथ ही मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग की समिति ने भी सारंडा क्षेत्र में खनन कार्य की अधिकतम सीमा निर्धारित किया है और वन्यजीवों, जैव विविधता तथा पर्यावरण संरक्षण का सुझाव दिया है।
वक्तव्य में श्री राय ने कहा कि वर्ष 2007-08 में झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने सारंडा वन क्षेत्रों 630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के अभग्न क्षेत्र घोषित करने का प्रतिवेदन दिया है, जहां पर खनन प्रतिबंधित होगा। तत्कालीन खान मंत्री सुधीर महतो की सहमति से वन विभाग ने यह प्रस्ताव गजट नोटिफिकेशन के लिए मुख्यमंत्री के यहां 2008 में भेजा पर खान और उद्योग विभाग ने आज तक गजट अधिसूचना जारी नहीं होने दिया। यह निर्णय आजतक सरकार के पास विचाराधीन है। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने सारंडा के 575.19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 8 अक्टूबर 2025 के पहले सैंक्चुअरी नहीं घोषित करने पर सरकार के मुख्य सचिव को जेल भेजने और इस बारे में परमादेश (mandamus) जारी करने की बात कही है तो यह सर्वथा उचित है और झारखंड के मुख्यमंत्री को इसका संज्ञान लेकर सारंडा में अविलंब सैंक्चुअरी घोषित करना चाहिए।
सरयू राय ने कहा कि आश्चर्य है कि अभी भी झारखंड सरकार के वन विभाग के अधिकारी भी खान विभाग के अधिकारी की तरह काम कर रहे हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के स्पष्ट प्रतिवेदन के बावजूद खान एवं वन विभाग के अपेक्षाकृत कनीय अधिकारियों की समिति गठित कर इन्होंने इसमें परिवर्तन का ग़ैरक़ानूनी प्रयास किया है।
सरयू राय ने बताया कि हाल ही में झारखंड राज्य वन्यजीव पर्षद का गठन किया है, जिसके 27 सदस्यों में से बहुत ढूंढने पर भी शायद ही एकाध वन्यजीव विशेषज्ञ मिलें! गत 1 जून को पर्षद की बैठक विधानसभा में हुई जिसमें सारंडा में सैंक्चुअरी का विषय एजेंडा में प्रमुख था। मुख्यमंत्री पर्षद के अध्यक्ष होते हैं, परंतु बैठक में मुख्यमंत्री बमुश्किल से दो-चार मिनट रहे। उनकी उपस्थिति में बैठक में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के प्रतिवेदन पर प्रतिकूल निर्णय हुआ। नियमानुसार मुख्यमंत्री के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस बैठक की अध्यक्षता नहीं कर सकता। पर मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में बैठक हुई और निर्णय हुए। यह ग़ैरक़ानूनी है। जिस विषय को सर्वोच्च न्यायालय अतिशय गम्भीरता से ले रहा है, उस विषय को झारखंड सरकार द्वारा हल्के और ग़ैरक़ानूनी ढंग से लेना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
सरयू राय ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से आग्रह किया कि वे सारंडा सघन वन में पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को शीघ्रातिशीघ्र क्रियान्वित करें और सचिव, वन एवं पर्यावरण ने गत 24 जून को सर्वोच्च न्यायालय के सामने विलंब की गलती के लिए माफ़ी माँगते हुए सारंडा सैंक्चुअरी घोषित करने का जो आश्वासन दिया है उसे आगामी 8 अक्टूबर के पहले पूरा करें।
#Saryu Roy #MLA West Jamshedpur #Supreme Court Order #Environmental Protection #Iron Ore Mining #Mining Vs Environment #Justice For Sarna #Forest Protection #Sustainable Mining #Wildlife Protection #Sarna Case #Eco Friendly Mining