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अंशुल शरण बने युगांतर भारती के अध्यक्ष


27 September 2024 | राँची

-कचरा निष्पादन को सबसे अधिक महत्व देने की आवश्यकता: सरयू राय
-आज सबसे बड़ा संकट छोटे जल स्रोतों पर है: सरयू राय
-हरमू और स्वर्णरेखा नदियों के उद्गम स्थल अतिक्रमण के कारण अपना पुराना स्वरूप खो चुके है: सरयू राय
-कचना निष्पादन प्रबंधन हेतु नगरपालिकाओं के अधिकारियों को प्रशिक्षण की आवश्यकता: सरयू राय
-पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 काफी व्यवहारिक है, इससे अधिक कड़ा कानून अब नहीं बन सकता: सरयू राय
-टेक्नोलॉजी ने ही सारी समस्या पैदा की है तो टेक्नोलॉजी से ही इन समस्याओं का होगा निदान: सरयू राय

-जो नदी जहाँ का है वह वहीं का गंगा है, यह हमें समझने की जरूरत है: प्रो. अंशुमाली
-आबादी के कुल भूभाग का न्यूनतम 8 प्रतिशत नदियों, जलाशयों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता: प्रो. अंशुमाली

-मानव सभ्यता को जन्म देनेवाली नदियाँ आज सबसे ज्यादा उपेक्षित: संजय रंजन
-प्रदूषण आज सर्वव्यापी हो गया है: संजय रंजन

राँची/स्वयंसेवी संस्था युगांतर भारती का वार्षिक आमसभा आज राँची में सम्पन्न हुआ। इस आम सभा में युंगातर भारती के अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष सहित कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यगण उपस्थित हुए। आम सभा में कुल आठ प्रस्ताव पारित हुए। जिसमें सबसे प्रमुख है श्रीमती मधु के स्थान पर सर्वसम्मति से अंशुल शरण को युगांतर भारती का अध्यक्ष बनाया जाना।

इसके पूर्व दामोदर बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष श्री सरयू राय ने मुख्य अतिथि के तौर पर अपने संबोधन में कहा कि मैं युगांतर भारती से सर्वप्रथम वर्ष 2004 में उस समय से जुड़ा। जब दामोदर बचाओ आंदोलन के बैनर तले अनेक छोटे-बड़े संस्थाएं हमसे जुड़ी, युगांतर भारती भी उनमें से एक था। कई संस्थाएं आई और चली गई परन्तु युगांतर भारती हमारे आंदोलन के आरंभकाल से आज तक साथ है। उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से हम अपने शरीर की देखभाल करते है उसी तरह से हमें अपने नदियों, पर्यावरण की भी देखभाल करनी चाहिए। जिस तरह से हमारे शरीर में अनगिनत नसें एवं नाड़ियां है, उसी प्रकार से धरती के अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ी और छोटी नदियाँ फैली हुई है। लघु जल स्रोत छोटे नसों के समान है और बड़ी नदियां नाड़ि के समान है। जिस प्रकार से आरबीसी, डब्ल्यूबीसी, प्लेटलेस आदि हमारी रक्त को शुद्धता प्रदान करती है उसी प्रकार से नदियों के अन्दर समाहित वनस्पतियां, जलीय जीव नदी के पानी को साफ कर उसे शुद्ध करती हैं। नदी को हम अपने शरीर से जोड़े, तुलना करे तो इसकी समस्या को हम बड़ी आसानी से समझ सकते हैं।

श्री सरयू राय ने कहा कि बड़ी नदियों की धारा छोटी नदियों से मिलकर बनती है और छोटी नदियाँ लघु जलस्रोतों, नालों से मिलकर बनती है। आज सबसे बड़ा संकट छोटे जल स्रोतों पर है। हरमू और स्वर्णरेखा नदियों के उद्गम स्थल का आज अतिक्रमण हो चुका है। इसके किनारे निर्माण कार्य और खेती होने से उद्गम स्थल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह चिन्ता का विषय है। छोटे जल स्रोतों को अतिक्रमण मुक्त हो, इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए। दूसरी चिंता है भोजन पात्र की। जिस पात्र में भोजन रखा जा रहा है वह कितना शुद्ध है। हम होटलों, रेस्टेरेंटों से खाना और खाद्य सामग्री जिस पात्र में लाते हैं वह पात्र कितना शुद्ध है इस हमलोग ध्यान नहीं देते हैं। उन पदार्थों में कुछ ऐसे तत्व होते है, जो हमारे शरीर को नुकसान पहंुचाते है, आरंभ में तो यह पता नहीं चलता परन्तु बाद में यह गंभीर बीमारी का रूप धारण कर लेता है। ये पात्र अनेक प्रकार के यौगिकों से बनती है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। हमें जिंदा रहने के लिए हवा, पानी, मिट्टी आदि जो बुनियादी जरूरतें है, उन्हें प्रकृति ने हमें मुफ्त दिया है, सरलता से और प्रचुर मात्रा में दिया है। मगर हम उसकी कद्र नहीं कर रहे हैं, उसका संरक्षण, संवर्द्धन नहीं कर पा रहे है, यह भी चिंता का विषय है।

सरयू राय ने आगे कहा कि आज अगर टेक्नोलॉजी ने ही सारा समस्या पैदा किया है तो टेक्नोलॉजी से ही इन समस्याओं का निदान भी होगा। हम अपने घर की साफ-सफाई बड़े मनोयोग से करते हैं पर जो कचरा हमारे घरों से निकलता है उसे हम बाहर खुले में फेंक देते हैं, जिससे हमारा परिवेश गंदा हो जाता है। हमें अपनी आदतें सुधारने की जरूरत है।

उन्होंने बताया कि आज कचरा निष्पादन को सबसे अधिक महत्व देने की आवश्यकता है। केन्द्र सरकार ने हर शहर को 15वें वित्त आयोग के जरिये सरकार के नगरपालिकाओं को काफी धन दिया है। मगर अधिकांश नगरपालिकाओं को पता ही नहीं है कि उस फंड का कचरा निष्पादन, साफ-सफाई में कैसे उपयोग करे। वे केवल सड़क किनारे पेवर्स ब्लॉक लगा देते हैं और अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। सरकारी अधिकारियों को इस मानसिकता से बाहर निकलने की आवश्यकता है। कचरा निष्पादन प्रबंधन के लिए नगर पालिकाओं के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने की जरूरत है।

सरयू राय ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 बना है, जो काफी व्यवहारिक है, इससे अधिक कड़ा कानून अब नहीं बन सकता है। केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदूषण नियंत्रण के लिए पर्याप्त शक्ति प्रदान की है। मगर राज्यों में इन प्रदूषण बोर्ड की स्थिति काफी खराब है। हम जानते हैं कि राज्य प्रदूषण बोर्ड उद्योगों को चलाने के लिए सीटीओ देती है और प्रत्येक साल इस सीटीओ का रिन्युअल कराना पड़ता है।

श्री राय ने आगे कहा कि विकास का कोई विरोध नहीं करता है लेकिन उस विकास को सम्हालने की कितनी क्षमता हमारे पर्यावरण में ही यह समझने की जरूरत है। किसी भी राज्य में दो बड़ी समितियां पर्यावरण की रक्षा के लिए बनी है। एक है जिला स्तर पर और दूसरा है राज्य स्तर पर। जिला स्तर पर र्प्यावरण संरक्षण समिति बनी हुई है, जिसके अध्यक्ष संबंधित उपायुक्त होते हैं और सभी संबंधित विभाग इसके सदस्य होते हैं। दूसरा राज्य स्तर पर है जिसके अध्यक्ष संबंधित राज्य के राज्यपाल होते हैं। राज्यपाल की अध्यक्षता में कार्यकारिणी समिति बनती है और मुख्य सचिव इसके कार्यकारी पदाधिकारी होते है। जो कार्यकारिणी समिति में लिए गये निणर्यों को पूरे राज्य में लागू कराते हैं। इन दोनों समिति की बैठक प्रतिवर्ष कराने का प्रावधान है। राज्य गठन हुए 24 वर्ष हो गए है, मगर राज्यपाल के स्तर से इस संबंध में एक भी बैठक नहीं हुई है, यह काफी चिंता का विषय है। 

उन्होंने कहा कि आज नदियों और पर्यावरण को प्रदूषण रहित करने में सामान्य जनमानस को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह स्वयं भुक्तभोगी है। हमें जागरूक उन मेधावी मस्तिष्क के स्वामी को करने की आवश्यकता है, जो जिले के संचालनकर्ता है। उन्हें आईना दिखाने की जरूरत है, सचेत करने की जरूरत है।

इससे पूर्व आईआईटी आईएसएम, धनबाद के प्रोफेसर अंशुमाली ने कहा कि जिस तरह से कुल स्थलीय भूमि के 33 प्रतिशत भूभाग पर जंगल की आवश्यकता है उसी प्रकार 8 प्रतिशत भूभाग पर नदी एवं अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों की आवश्यकता है। हम छोटे जल स्रोत स्थल, नदियों की जमीन को अपना हिस्सा समझ कर उस पर कब्जा कर लिये है, जिससे जल संकट गहराता जा रहा है। यदि गाँव से लेकर शहर तक की 8 प्रतिशत भूभाग नदियों, जलाशयों के लिए आरक्षित कर दिया जाय तो जल संकट पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। धरती का 20 प्रतिशत पीने योग्य स्वच्छ पानी अमेजन क्षेत्र से प्राप्त होता है। लेकिन यह क्षेत्र भी अपनी दुरूह स्थिति से गुजर रहा है, जिसके कारण लोग वहां से पलायन कर रहे हैं। अगर हम अब भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब पानी के अभाव में हमलोग भी अपने निवास से पलायन को मजबूर हो जायेंगे। जो नदी जहाँ का है वह वहीं का गंगा है, उसे स्वच्छ, पवित्र और निर्मल रखने का दायित्व हम पर है, यह हमें समझने की जरूरत है।

सेवानिवृत डीआईजी संजय रंजन ने आम सभा में कहा कि मानव सभ्यता को जन्म देनेवाली नदियाँ आज उपेक्षित है, हमारे संरक्षण के लिए व्याकुल है। उन्होंने कहा कि आज हर स्तर पर प्रदूषण व्याप्त है। सड़क पर चलते हुए हर दो कदम पर थुकने, लिफ्ट और सीढ़ियों पर पान-गुटखा खाकर थुकने की प्रवृति भी प्रदूषण का एक ही अलग स्तर है। हमें अपने संस्कारों को अपनाने की जरूरत है। आज हर घर पर आरओ मशीन लगा हुआ है। लोग आरओ का पानी ही पी रहे हैं। इसका अर्थ है कि हमारे पारंपरिक जल स्रोत कुआँ, तालाब, नदी के मृत होने के सूचक है।

युगांतर भारती के सचिव आशीष शीतल मुण्डा ने पिछले वर्ष का लेखाजोखा आम सभा में रखा। कार्यक्रम का संचालन प्रवीण सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष अशोक गोयल ने किया। आम सभा में शारदा महेश प्रताप, ज्योति प्रकाश, समीर सिंह, शिवाजी सिंह, मनोज मेहता, सुबोध श्रीवास्तव, कमल भगत, सुनील मिश्रा, बालकृष्णा सिंह, उदय सिंह, गौतम देव ने भी अपने विचार रखे।

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