बचपन और परिवार
सरयू राय का जन्म 16 जुलाई 1951 को एक छोटे से गांव खनिता में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले के इटाढ़ी ब्लॉक स्थित उनके गांव खनिता में लगभग 100 परिवार रहते थे।
वर्ष 1991 में बिहार का प्रशासनिक पुनर्गठन करते हुए शाहाबाद जिले को चार जिलों- गया, बक्सर, रोहतास और कैमूर में विभाजित कर दिया गया। वर्तमान में सरयू राय का पैतृक गांव उत्तर प्रदेश की उत्तर और पश्चिम सीमा से सटे बक्सर जिले के अंतर्गत आता है। गंगा नदी के दाहिनी ओर स्थित बक्सर एक प्राचीन स्थान है जिसका उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामायण' के बाल कांड में महर्षि विश्वामित्र की तपोस्थली के रूप में किया गया है। महर्षि विश्वामित्र ताड़का, मारीच, सुबाहू और अन्य राक्षसों के विनाश के लिए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ वन में लेकर लाए थे।
तत्कालीन शाहाबाद जिला वर्ष 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 80 वर्षीय बहादुर योद्धा वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में हुए विद्रोह के स्थल के रूप में जाना जाता है। उस आंदोलन के दौरान वीर कुंवर सिंह ने शाहाबाद में अपने मुख्यालय जगदीशपुर से शक्तिशाली ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी और उत्तर भारत में जहां भी उन्होंने चढ़ाई की, वहां अंग्रेजों को पराजित किया।
उनका पैतृक गांव खनिता में विभिन्न जाति-धर्मों के लगभग 100 परिवार रहते हैं जहां हिंदू की विभिन्न जातियों के लोगों के साथ ही लगभग एक दर्जन घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के भी हैं। यह गांव जातीय और सांप्रदायिक सद्भाव की गौरवशाली परंपरा की विरासत को आज भी सहेजे हुए है। इस गांव में भगवान शिव का सदियों पुराना एक पूजा स्थल भी है जिसे बूढ़ा महादेव के नाम से जाना जाता है। इस पूजा स्थल के चारों ओर मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर हैं। होली हो, दिवाली हो, ईद हो या फिर मोहर्रम का अवसर, यहां हर त्योहार हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर मनाते हैं। इतना ही नहीं वे एक-दूसरे के उत्सवों में शामिल होते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। हिंदुओं द्वारा कर्बला में पहलाम से पहले मोहर्रम का ताजिया उठाकर पूरे गांव में घुमाया जाता है और खुले आसमान के नीचे बूढ़ा महादेव में होली खेलने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग भी उसी श्रद्धा भाव से उमड़ते हैं। इस गांव में आज भी इन प्राचीन परंपराओं का पालन किया जाता है। राज्य, देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तमाम मतभेदों के बावजूद इस गांव में आज भी हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कायम है। यहां आज भी हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के लोगों में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल है।
उपजाऊ जलोढ़ भूमि और सिंचाई के संसाधनों से भरपूर यह गांव तीन ओर से ऐतिहासिक सोन नदी की नहरों से घिरा हुआ है। आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) के अंत तक यह गांव पक्के सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाया था। उस वक्त यह गांव जुलाई में मानसूनी बारिश की शुरुआत से लेकर दिसंबर में धान की कटाई का मौसम पूरा होने तक लगभग छह महीने तक मुख्य मार्ग से कटा रहता था। उस दौर में इस गांव में खुदरा दुकानदारों के लिए दैनिक उपभोग का सामान लाने के लिए परिवहन का एकमात्र साधन घोड़े और गधे हुआ करते थे।
जनवरी से जून तक शेष छह महीनों में धूल भरी कच्ची सड़कों पर परिवहन के साधन के तौर पर बैलगाड़ियों का उपयोग किया जाता था। बाद में इन बैलगाड़ियों की जगह ट्रैक्टर और जीप जैसे संसाधनों ने ले ली।
वर्ष 1997-2002 के बीच जब सरयू राय बिहार विधान परिषद के सदस्य बने तो उनके अथक प्रयासों के बाद नौवीं पंचवर्षीय योजना के तहत स्थानीय क्षेत्र विकास निधि के माध्यम से इस गांव को ब्लॉक/उपमंडलीय केंद्र तक पक्की सड़कों से जोड़ा गया।
उनके पिता स्वर्गीय केशव प्रसाद राय ने औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी। वह सिर्फ अपने हस्ताक्षर करना ही जानते थे जबकि उनकी मां स्वर्गीय सुखवासी देवी एक गृहिणी थीं, वह पूरी तरह निरक्षर थीं।
उनकी पांच बहनें हैं, एक को छोड़कर बाकी सभी उनसे बड़ी हैं, इसके अलावा एक छोटा भाई भी है जिनका नाम यमुना राय है। वह गांव में रहकर ही पुश्तैनी खेती की देखभाल करते हैं।