भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम

राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के बीच जाकर उन्हें जागरूक करने और आगे आने के लिए प्रेरित करने के लिए सरयू राय के नेतृत्व में जन चेतना रैलियों का आयोजन किया गया। इनके जरिये लोगों से आगे आकर व्यवस्था में ऊंचे पदों पर बैठे भ्रष्टाचारियों का विरोध करने का आह्वान किया गया। पहली रैली रांची में 18 मार्च 2012 को हुई थी। इसी दिन वर्ष 1974 में बिहार के छात्रों ने राज्य विधान सभा का घेराव किया था और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ प्रसिद्ध बिहार आंदोलन की शुरुआत की गई थी।

आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया। राज्य सरकार ने शांतिपूर्ण आंदोलन को रोकने के लिए हिंसा और अत्यधिक बल का प्रयोग किया। छात्र संगठनों ने आंदोलन का नेतृत्व और मार्गदर्शन करने के लिए उन्होंने जेपी (जय प्रकाश नारायण) से संपर्क किया।

भारत की कोयला राजधानी के रूप में जाने जाने वाले धनबाद में, कुल क्रांति दिवस की पूर्व संध्या पर 5 जून 2012 को दूसरी जन चेतना रैली का आयोजन किया गया था। 1974 के आंदोलन के दौरान व्यापक विचार-विमर्श के बाद पटना के गांधी मैदान में एक विशाल रैली में जेपी ने घोषणा की कि अब से आंदोलन का उद्देश्य सम्पूर्ण क्रांति होगा। उसी दिन रैली में उन्हें जननायक घोषित कर जनता का नेतृत्व करने के लिए चुना गया। जेपी ने घोषणा की कि उनके नेतृत्व में जन आंदोलन का लक्ष्य व्यवस्था में बदलाव होगा और यह सत्ता परिवर्तन तक सीमित नहीं रहेगा। यदि आवश्यक हुआ तो सत्ता परिवर्तन केवल एक पड़ाव होगा, मंजिल नहीं।

1974 के जेपी आंदोलन की एक और उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि यह सर्वसमावेशी आंदोलन था। प्रत्येक व्यक्ति एवं संगठन को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन किसी को भी अपनी भागीदारी के लिए अपनी शर्तों को निर्धारित करने की अनुमति नहीं थी। किसी के पास वीटो पावर जैसा अधिकार नहीं था। यह व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने का एक प्रयास था। इसमें व्यवस्था में मौजूद उन लोगों को भी शामिल किया गया था जो बदलाव चाहते थे। इसने सकारात्मक परिणाम तब दिए जब चार राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया और बिहार विधानसभा के अधिकांश विधायकों ने जनता के दबाव में अपना इस्तीफा दे दिया। विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक गैर-सरकारी संगठनों और कम्युनिस्टों को छोड़कर सभी राजनीतिक दल जेपी के नेतृत्व में आंदोलन के इर्द-गिर्द लामबंद हो गए। आंदोलन ने केंद्र सरकार को बदलने की पहली बाधा को पार कर लिया, जो आंदोलन के विरोध में थी, लेकिन कुछ वर्षों के बाद कुछ नेताओं के अहंकार और बदले की भावना के कारण आंदोलन कमजोर पड़ गया।

जन चेतना रैलियों के आयोजन के पीछे का मकसद आम लोगों और विशेष रूप से भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वालों को 38 साल पहले ऐसे ही आंदोलन की सफलता और असफलता के पीछे की कठोर वास्तविकताओं से अवगत कराना और उससे उपयुक्त सबक लेना है। इतिहास खुद को दोहराता है लेकिन हमेशा नहीं और उसी तरह से भी नहीं। आइए अतीत के सबक लेकर बदलाव की राह पर स्पष्ट विवेक के साथ आगे बढ़ें।

दिन पर दिन बढ़ रहे देशव्यापी भ्रष्टाचार के संबंध में रांची के विधानसभा मैदान में रविवार, 18 मार्च, 2012 को एक रैली-सह-सार्वजनिक बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया। इस रैली का मुख्य उद्देश्य देश में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों के लिए एक 'मानसिक और साझा मंच' खोजना था। यह सर्वविदित है कि लोग भ्रष्टाचार से तंग आ चुके थे।

यह सच है कि देश के युवाओं ने श्री अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और डॉ. सुब्रमण्यन स्वामी द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लिया है, जो आम आदमी की भ्रष्टाचार के खिलाफ मानसिकता का प्रमाण है।